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Lyrics

05 Santon Sahaj Samadhi Bhali Sanjay.mp3


Album: KAHEN KABIR II (2006)

संतो, सहज समाधि भली।

संतो, सहज समाधि भली।
साईं ते मिल भयो जा दिन ते -2, सुरत न अंत चली।।
सहज समाधि भली।
संतो, सहज समाधि भली।

आंख न मंूदू कान न रूंधूं,
काया कष्ट न धांरू। -2
खुले नैन मैं हंस हंस देखंू, संुदर रूप निहारूं।।
कहँू सो नाम, सुनू सो सुमिरन,
जो कुछ करूं सो पूजा। -2
गिरह उद्यान एक सम देखंू, भाव मिटाऊं दूजा।।
सहज समाधि भली।
संतो, सहज समाधि भली। -2

जहँ जहँ जाऊँ सोई परिकरमा,
जो कुछ करूं सौ सेवा। -2
जब सोऊं तब करूं दण्डवत, पूजंू और न देवा।।-
शब्द निरन्तर मनुआ राता,
मलिन बचन का त्यागी।-2
ऊठत-बैठत कबहुं न बिसरै, ऐसी तारी लागी।
सहज समाधि भली।
संतो, सहज समाधि भली। -2

कहैं कबीर यह उन्मुनि रहनी,
सो परगट कर गाई।-2
सुख-दुखके इक परे परम सुख, तेहिमें रहा समाई।
सहज समाधि भली।
संतो, सहज समाधि भली। -2

संतो, सहज समाधि भली।
साईं ते मिल भयो जा दिन ते -2, सुरत न अंत चली।।
सहज समाधि भली।
संतो, सहज समाधि भली। -3



विवरण संतो, सहज समाधि भली

प्रस्तुत भजन में कबीरदास जी अपनी समाधि स्थिति का प्रमाण दे रहे हैं। ‘‘मैं दर्शन की मदिरा में मस्त हो गया हूँ। साईं की ज्योति भरपूर रूप में प्रकट है। ज्ञान की थाली में प्रेम का दीया जल रहा है। मैंने शून्य आसन पर बैठकर साधना के अवर्णनीय रस का प्याला पिया है। सहज ही चलकर मैं इस शहर में पहुंच गया हूँ, जहां कोई दुख नहीं है। ईश्वर की दया और कृपा सहज ही प्राप्त है। मैंने तो ध्यान में ही साईं के दर्शन पाये हैं। जो असीम, अनंत और अगम है। इस स्थान में एक विचित्र शांति है। ज्ञानी वह है जिसने इस स्थिति को पाया है और इसका गीत गाया


ENGLISH TRANSLATION

O SADHU! The simple union is the best. Since the day when I met with my Lord, there has been no end to the scope of our love. I shut not my eyes, I close not my ears. I do not mortify my body. I see with eyes open and smile, and behold his beauty everywhere. I utter his name, and whatever I see, it reminds me of him. Whatever I do, it becomes his version. The rising and the setting are one to me. All contradictions are solved. Wherever I go I move around him. All I achieve, is his service. When I lie down, I lie prostrate at his feet. He is the only adorable one to me. I have none other. My tongue has left off impure words. It says his glory day and night. whether I rise or sit down, I can never forget him, for the rhythm of his music beats in my ears. Kabir says - My heart is frenzy and I disclose in my soul what is hidden. I am immersed in one great bliss, which transcends all pleasures and pain.