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Lyrics
03 ARE DIL.mp3
Album: KAHEN KABIR II (2006)
अरे दिल
प्रेम नगर का अंत न पाया-2, ज्यों आया त्यों जावेगा।
अरे दिल -2
सुन मेरे साजन सुन मेरे मीता, या जीवन में क्या क्या बात बीता।। -2
सिर पाहन को बोझा लीता -2; आगे कौन छुड़ावेगा।
अरे दिल -2
परली पार मेरा मीता खड़िया, उस मिलने का ध्यान न धरिया। -2
टूटी नाव ऊपर जो बैठा-2, गाफ़िल गोता खावैगा।।
अरे दिल -2
दास कबीर काहैं समुझाई-2, अंतकाल तेरा कौन सहाई। -2
चला अकेला संग न कोई, किया अपना पावैगा।।
अरे दिल -2
प्रेम नगर का अंत न पाया-2, ज्यों आया त्यों जावेगा।
अरे दिल -2
विवरण-अरे दिल
प्रस्तुत भजन में कबीर दास जी आम जनता के दिलों को संबोधित कर रहे हैं। यहां जीवन के सही रस से मानव परिचित नहीं। जहां प्रेम सागर बहना चाहिए वहां पत्थरों सा बोझा लिए इंसान भटक रहा है। अपनी त्रिगुणी नाड़ियों के मध्य में हृदय चक्र का यह असंतुलन, शरीर रूपी नाव को तोड़ रहा है। जिस अद्भुत मिलन की खोज है, वह तो अपने अंग-संग में ही प्राप्त है। फिर अंत का इंतजार क्यों? क्यों न आज ही संभल जाएं और प्रेम के सागर में इस तरह समा जायें कि जनम-मरण के बंधन से ही मुक्त हो जायें।
TRANSLATION - Gurudev Rabindranath Tagore
O my heart! You have not known all the secrets of this city of love : in ignorance you came and in ignorance you return. O my friend! What have you done with this life? You have taken on your head the burden heavy with stones, and who is to lighten it for you? Your friend stands on the other shore, but you never think in your mind how you may meet with Him. The boat is broken and yet you sit ever upon the bank; and thus you are beaten to no purpose by the waves. The servant Kabir asks you to consider, who is there that shall befriend you at the last? You are alone, you have no companion : you will suffer the consequences of your own deeds.