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Lyrics

02 SAT GURU HO MAHARAJ.mp3


Album: KAHEN KABIR I (2006)

सतगुरू हो महाराज

सतगुरू हो महाराज मौपे साईं रंग ड़ारा

शब्द की चोट लगी मोरे मन में
बेध गया तन सारा, सांईं रंग डारा।।

औशधि मूल कछु नहीं लागे,
क्या करें वैद बेचारा, सांईं रंग डारा।

सुर नर मुन जन पीर औलियाा
कोऊँ न पावे पारा, सांईं रंग डारा।।

साहिब कबीर सर्व रंग रंगिया,
रंग रंगिया -2
साहिब कबीर सर्व रंग रंगिया,
सब रंग ते रंग न्यारा, साँई रंग डारा।।
सतगुरू हो महाराज मौपे साईं रंग ड़ारा
साईं रंग ड़ारा -3


सत गुरू हो महाराज - विवरण

अपने साईं के दर्शन का स्वाद, जो कबीर ने अपने अंतःकरण में जाना, उन्हें इन शब्दों में बयां किया-‘‘मेरे सांईं के यहाँ पांचों स्वाद, यानि शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध की प्यास बुझती है। मानव दैहिक, दैविक व भौतिक, तीनों संतापों से रहित हो जाता है। यही अटूट सत्य है। इस स्वाद का सुख पा लेने के बाद अज्ञानी ज्ञानी बन जाता है, और ज्ञानी शांत हो जाता है। खुदा ने ज़बरदस्ती की हिदायत तो कभी नहीं दी है, भूखे रहकर, शरीर को कष्ट देकर और किताबें पढ़कर जन्नत नहीं मिलती। कबीर जी का सबके लिए यही उपदेश रहा कि अपने खुदा को पहिचानो और दिल में रहम पैदा करो। तक ही सांईं के रंग में रंग पाओगे।


TRANSLATION

I am only enamored by the Kingdom of my Satguru as I experience His subtle colors within me. The World has enlightened my attention, having pierced my entire Body and I experience His subtle colors within me. No account of medicines can cure me as I have risen above illness. No doubt the Doctor is helpless. All men and saints cannot cross this ocean of illusion unless His subtle colors are experienced by them. Kabir has seen all colors of the World but those of the Lord are the only ones where he experiences his subtle self.