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Lyrics
4 SATGURU SOHI.mp3
Album: KAHAT KABIR(1994)
सतगुरु सोही दया करी दिन्हा
सतगुरु सोही दया करी दिन्हा -2, ताते अन्न् चिनहआर में चिन्ह
सतगुरु सोही दया करी दिन्हा - 2
बिन पग चलना, बिन पर उड़ना, बिना चूंच का चुगना -2
बिन नैनन का देखन-बेखन-2, बिन सरवन का सुनना
सतगुरु सोही दया करी दिन्हा - 2
चंद्र ना सूर, दिवस नहीं रजनी, तहाँ सूरत सौं लाई - 2
बिना अन्न अमृत रस भोजन-2, बिन जल त्रिशा बुझाई
सतगुरु सोही दया करी दिन्हा - 2
जहाँ हरस तहाँ पूरण सूख है, यह सूख कासो कहना -2
कहें कबीर बल-बल सतगुरु की -2, धन्य सिस्या का लेहना
सतगुरु सोही दया करी दिन्हा - 2 ताते अन्न् चिनहआर में चिन्ह
सतगुरु सोही दया करी दिन्हा - 2
विवरण
संत कबीर जो पूर्ण प्राप्त देहधारी थे, अपूर्ण मानव के अंतर में असंतुलन का वर्णन कर रहे हैं। अपूर्ण को परिपूर्ण बनाने के लिए, प्रस्तुत भजन में कबीर जी ने यह सुझाव रखा है, कि मानव को अपनी जागृति और निर्मोहता की ओर ध्यान देना चाहिए। सद्गुरू की धारणा में ही इस काया की निर्मलता प्राप्त है। तब ही गुरूपद दर्शन का प्रमाण मिलेगा।
ENGLISH TRANSLATION
It is the mercy of my true Guru that has made me to know the unknown;
I have learned from Him how to walk without feet, to see without eyes, to hear without ears, to drink without mouth, to fly without wings;
I have brought my love and my meditation into the land where there is no sun and moon, nor day and night.
Without eating, I have tasted of the sweetness of nectar; and without water, I have quenched my thirst.
Where there is the response of delight, there is the fullness of joy. Before whom can that joy be uttered?
Kabir says: "The Guru is great beyond words, and great is the good fortune of the disciple."