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Lyrics

3 AVADHU BHOOLE KO GHAR LAAWE.mp3


Album: KAHAT KABIR(1994)

अवधू भूलेको घर लावै।

अवधू भूलेको घर लावै।
सो जन हमको भावै।।
भूलेको घर लावै, अवधू भूलेको घर लावै।

घर में जोग भोग घरहीमें-2, घर तज बन नहि जावै।-2
घर में जुक्त मुक्त घरहीमें-2, जो गुरू अलख अखावै।
भूलेको घर लावै, अवधू भूलेको घर लावै।

सहज सुन्नमें रहै समाना-2, सहज समाधि लगावै।-2
उन्मुनि रहे ब्रह्मको चीन्हैं-2, परम् तत्व को ध्यावै।
भूलेको घर लावै, अवधू भूलेको घर लावै।

सुरत-निरतसों मेला करके-2, अनहद नाद बजावै।-2
घर में बसत वस्तु भी घर है-2, घर ही वस्तु मिलावै।-2
कहैं कबीरा सुनो हो साधु-3, ज्यों का त्यों ठहरावै।
भूलेको घर लावै, अवधू भूलेको घर लावै।
सो जन हमको भावै।।
भूलेको घर लावै, भूलेको घर लावै।....



विवरण - अवधू भूलेको घर लावै।

परम परागत उस समय, प्रभु की खोज में साधक घर-बार छोड़ कर, वनों और कन्दराओं में तप किया करते थे। सन्त कबीर आत्मा के अनुभवी थे और सत्य को जानते थे। इसलिए उन्होंने कहा, कि सच्चा साधु भी वही है, जो भूले या भटके को राह पर लाता है। जिसको प्रभु ने जहां बिठाया है, उसको प्रभु वहीं पर पाना है। उसके लिए कहीं आना जाना नहीं है। घर में ही भोग करते हुए योग यानि प्रभु मिलन प्राप्त करना है और गृहस्थी में ही युक्ति से मुक्ति को पाना है। सच्चा गुरू लुप्त सच्चाईयों का अनुभव देता है, शून्य को जानता है, सहज समाधि प्रदान करता है। बाहर से मौन व भीतर से ब्रह्म के तत्वों को पहचानता है। चेतना के बल से वैराग्य को पाकर हृदय में प्रेम तत्व को जगाता है। इस शरीर में बसी आत्मा ही लक्ष्य है, और यही लक्ष्य को इस शरीर-रूपी घर में ही पाया जाता है। कबीर जी कहते हैं, बाकी सब ज्यों का त्यों ही धरा रहता ळें



ENGLISH TRANLATION - GURUDEV RABINDRANATH TAGORE

He is dear to me indeed who can call back the wanderer to his home. In the home is the true union, in the home is enjoyment of life: why should I forsake my home and wander in the forest?
If Brahma helps me to realize truth, verily I will find both bondage and deliverance in home.
He is dear to me indeed who has power to dive deep into Brahma; whose mind loses itself with ease in His contemplation.
He is dear to me who knows Brahma, and can dwell on His supreme truth in meditation; and who can play the melody of the Infinite by uniting love and renunciation in life.
Kabir says: "The home is the abiding place; in the home is reality; the home helps to attain Him Who is real. So stay where you are, and all things shall come to you in time."