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Lyrics

1 TOHI NOHI LAGAN.mp3


Album: KABIR BHAJNAMRIT(1993)

बालम आओ

बालम आओ हमारे गेह रे।
तुम बिन दुखिया देह रे।
सब कोई कहे तुम्हारी नारी, मोको लागत लाज रे।
दिल से नहीं दिल लगाया, तब लग कैसा स्नेह रे।


तोहि मोरी लगन

तोहि मोरी लगन लगाए रे फकीरवा, रे फकीरवा... -4

सोवत ही मैं अपने मंदिर में -२, सब बन मारी जगाए,
जगाए रे फकीरवा, रे फकीरवा
तोहि मोरी लगन लगाए रे फकीरवा, रे फकीरवा

बूढ़त ही मैं भाव के सागर में, बहियाँ पकड़ि समुझाए,
समुझाए रे फकीरवा
तोहि मोरी लगन लगाए रे फकीरवा, रे फकीरवा

एकै बचन, बचन ऩहीँ दूजा - 2, तुम मोसे बँध छुड़ाए
छुड़ाए रे फकीरवा, रे फकीरवा
तोहि मोरी लगन लगाए रे फकीरवा, रे फकीरवा

कहें कबीर, सुनो भाई साधों -3, प्राणन प्राण लगाए
लगाए रे फकीरवा, रे फकीरवा
तोहि मोरी लगन लगाए रे फकीरवा, रे फकीरवा... -4



विवरण
संत कबीर जी के जीवन के कई पहलू थे, लेकिन इशारा, केवल अपने साईं की ओर था। उनकी मानसिक स्थिति इन शब्दों में परिलक्षित है: ‘न हूँ मैं धर्मी, न अधर्मी, न हूँ नियमों का पाबन्ध, न वासनाओं का दास। ना मैं बोलता हूँ, ना मैं सुनता हूँ। ना मैं उपासक हूँ, ना उपास्य। ना मंै बल के आधीन हू, ना उन्मुक्तता के। मेरा किसी से संबंध नहीं और ना ही मैं संबंधहीन हूँ। सब काम मैंने किए हैं, लेकिन हर काम से उदासीन हूँ। मुझे तो केवल अपने बालम की प्रतीक्षा है।

प्रस्तुत भजन में कबीर साहिब सदगुरु महिमा का बखान कर रहे हें। उनमे इतनी क्षमता है की वे सोए मानव को शब्द के गौरव से उठा कर पार कर देते हैं। वे कठिन लक्ष्या को ऐसे समझते हें, की समस्त बाधाएं भाग जाती हैं। वह अपने आत्म-बाल से लोगों में आत्मा की जागृति कर देते हैं।

TRANSLATION – GURUDEV RABINDRANATH TAGORE.

My body and my mind are grieved for the want of thee. O my Beloved! Come to my house. When people say, I am thy bride, I am ashamed. For I have not touched thy heart with my heart. Then what is this love of mine? To thee, thou hast to drown my love, O Fakir! I was sleeping in my own chamber and thou dist awaken me, striking me with thy voice. O Fakir! I was drowning in the deeps of the ocean of this world and thou dist save me, & holding me with thy arms. O Fakir! Only one word and no second, and thou hast made me tear all my bonds. Kabir says, O Fakir! Thou hast united thy heart to my heart.
Then what is this love of mine? I have no taste for food, I have no sleep; my heart is ever restless within doors and without.
As water is to the thirsty, so is the lover to the bride. Who is there that will carry my news to my Beloved?
Kabir is restless: he is dying for sight of Him.