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Lyrics

04 Baisey Jalwa-E-Gul.mp3


Album: ISHQ KA NAGMA (2003)

बाइसे-जल्वा-ए-गुल.....-मजरूह सुल्तानपुरी

बाइसे-जल्वा-ए-गुल दीदा-ए-तर है कि नहीं।
मेरी आहों से बहारों की सहर है कि नहीं।।

राह-गुमकर्दा हूँ, कुछ उसको ख़बर है कि नहीं।
उसकी पलकों पे सितारों का गुज़र है कि नहीं
दिल से मिलती तो है इक राह कही ंसे आकर।
सोचता हूँ, यह तेरी राह गुज़र है कि नहीं।।

रू-ए-मशरिक़ की कसम हमको हैे इतना मालूम।
शबे दौराँ, तेरे वस्ल में सहर है कि नहीं।।
मैं जो कहता था, सो ऐ रहबरे कोताह खिराम।
मेरी मंजिल भी मेरी गर्दे सफर है कि नहीं।।
अहले तकदीरां यह है मोजज़ा-ए-दस्ते अमल।
जो खज़फ मैने उठाया, वो गुहर है कि नहीं।।

देखा कलियों को चटकना सरे गुलशन सैयाद।।
जमज़मासंज मेरा खूने-जिगर है कि नहीं।।
हम रिवायात के मुन्किर नहीं लेकिन ‘मजरूह’।
सबकी है सबसे जुदा अपनी डगर है कि नहीं।।


सारांश:

फूलों की जो खुबसूरती है, जो दिखाई देती है, उस जलने से आंखों में आंसू आ रहे हैं या नहीं? मेरी आहों की जो पुकार है उनसे बहार में सुकून है या नहीं? मैं रास्ता भूला हूँ जिसके लिए उसकी खबर है या नहीं? उसकी पलको ंपर सितारे टमटमाते हैं या नहीं? सोचता हूँ उन्हीें राहों में कभी वो मिल जाएगी? जो गुज़रने वाली रातें हैं उनकी मंजिल है कि नहीं? ऐ मेरी तकदीर के मालिक, जो ज़र्रा मैंने उठाया है वो हीरा है या नहीं? कलियों को खिलते देखा है, गुलशन में कलियों का चटकना देखा है। क्या इसमें मेरा खून भी बोलता है या नहीं। हम परम्पराओं के तो खिलाफ नहीं है, लेकिन जो हमारा रास्ता है, जो सबसे अलग है।