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Lyrics

03 Rahi Na-Gufta Mere Dil Mein.mp3


Album: ISHQ KA NAGMA (2003)

रही नागुफ्त...-मीर तकी मीर

रही नागुफ्त, मेरे दिल में, दास्ताँ मेरी।
न इस दयार में समझा कोई, जुबाँ मेरी।

बरंग-ए-सौत-ए-जरस, तुझसे दूर हूँ तन्हा।
खबर नहीं है तुझे आह, करवाँ, मेरी।।

उसी से दूर रहा, अस्ले-मुद आ जो था।
गई यह ‘उम्र-ए-अज़ीज आह, रायगाँ, मेरी।।

तेरे फिराक में, जैसे ख़्याल मुफ्लिस का।
गई है फिक्र-ए-परीशाँ, कहाँ कहाँ, मेरी।

दिया दिखाई मुझे तो उसी का जलवा, ‘मीर’।
पड़ी जहान मे ंजा कर नजर, जहाँ मेरी।


सारांश:

मेरे दिल में, वो न कही हुई बात रही। इस दुनिया में मेरी जबान किसी ने नहीं समझी। कारवाँ की ध्वनि की तरह मैं तुझसे दूर रहा, और तुझे मेरी खबर भी नहीं रही। जो असली बात थी, वो छिपी रही, और मेरी ज़िन्दगी उसी तन्हाई में बरबाद हो गई। तेरी जुदाई में, उस गरीब के ख्याल की तरह रहा, जो इन ख्यालों में सोचता रहा, परेशाँ होकर। फिर हर जगह उसी का जलवा नज़र आया, जिसे मैं चाहता था।