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Lyrics
05 Parishaan hoke meri khaakh.mp3
Album: ISHQ KA NAGMA (2003)
परेशाँ होके....-इकबाल
परेशाँ होके, मेरी ख़ाक, आखिर दिल न बन जाये।
जो मुश्किल अब है या रब, फिर वही मुश्किल न बन जाये।।
न कर दें मुझको, मजबूरे-नया फिरदौस में हूरें।
मेरा सोज़े-दुरूँ, फिर गर्मिए-महफिल न बन जाये।।
कभी छोड़ी हुई मंजिल भी याद नहीं आती है राही को।
खटकती है जो सीने में, गमें-मंजिल न बन जाये।
बनाया इश्क ने दरिया-ए-नापैदा-कराँ मुझको।।
यह मेरी खुद-निगहदारी, मेरा साहिल न बन जाए।।
उरूजे आदमें-खाक़ी से अंजुम सहमे जाते हैं।
कि यह टूटा हुआ तारा महे-कामिल न बन जाये।
सारांश
मेरी जो खाक है, यह एक दिल की शक्ल न इख्तयार कर लें। जिन मुश्किलों से अब गुजर रहा हूँ, वही मुश्किल ना बन जाए। स्वर्ग में जो हूरे हैं।, वो मुझको बोलने पर मजबूर न कर दें। जो दर्द मेरे अंदर छिपा हुआ है, वो महफिल में गर्मी ना पैदा कर दें जो मंजिल छूट गई है, वो भी राही को याद आती है। ऐसा न हो, कि जो बेचैनी मन में है, यही मंजिल का ग़म बन जाए। इश्क ने मुझे बेअन्त बना दिया है। वो दरिया जिसका कोई किनारा ही नहीं है। ऐसा ना हो जहां नज़र रूक जाए, वही मेरा किनारा बन जाए। आदमी खाक से तो पैदा हुआ है। उसकी तरक्की से तारे भी सहम जाते हैं, कि कहीं वो इन्सान पूरा चाँद न बन जाए।