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Lyrics
07 Us Bazm Mein.mp3
Album: ISHQ KA NAGMA (2003)
उस बज़्म में.....-मिर्जा गालिब
उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किये।
बैठा रहा, अगरचे इशारे हुआ किये।।
दिल ही तो है, सियासत-ए-दर्बां से डर गया।
मैं, और जाऊँ दर से तेरे, बिन सदा किये।।
किस रोज़ तुहमते न तराशा किये अदु।
किस दिन हमारे सर पे न आरे चला किये।।
सोहबत में गैर की, न पड़ी हो कहीं ये खू।
देने लगा है बोसा, बग़ैर इल्तिजा किये।।
ज़िद की है और बात, मगर खू बुरी नहीं।
भूले से उसने सैकड़ों वादे वफ़ा किये।।
‘गालिब’ की तुम्ही कहो, कि मिलेगा जवाब क्या।
मना कि तुम कहा किये, और वो सुना किये।
सारांश:
महफिल में वो इशारा करते रहे, पर मैं बैठा रहा खामोश शर्म हवा किए। मैं बैठा रहा, जबकि ये बात कहने में मुझे शर्म नहीं आती कि मेरी तरफ इशारें होते रहे। ये जो दिल हैं, ये सियासत से ही डर गया, जो तुम्हारे दर पर थी। मैं तो तुम्हारे दरवाज़े से सलाम किए बिना जा नहीं सकता, दरबान की इसी सियासत से मैं डर गया। ये कैसे हो सकता था कि मैं बिन सज़दा किए निकल जाऊँ। कौन सा दिन था जब दुश्मनों ने मुझ पर तोहमतें ना लगाई। किस दिन हमें ज़ख्मी ना किया गया। गैर की सौबत और ताल्लुक से, बुरी आदत पड़ गई। हमारी माशूका अब बगैर मांग ही बोसा देने लगी। भूले से उसने जो वादे किए थे, वो तो पूरे कर दिए। उसकी आदत बुरी नहीं। तुम्हीं बताओ कि तुम्हारी बातों का तुम्हें क्या जबाव मिलेगा, जब तुम्हीं कहते रहते हो और वो सुनते रहते हैं।