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Lyrics

01 Ishq Ka Nagma.mp3


Album: ISHQ KA NAGMA (2003)

इश्क का नग़्मा - -अली सरदार जाफरी
इश्क का नग़्मा जुनूँ के साज़ पर गाते हैं हम।
अपने ग़म की आंच से पत्थर को पिघलाते हैं हम।।

जाग उठते हैं तो सूली पर भी नींद आती नहीं।
वक्त पड़ जाए तो अंगारों पे सो जाते हैं हम।।

जिन्दगी को हमसे बढ़कर कौन कर सकता है प्यार।
और अगर मरने पे आ जाये तो मर जाते हैं हमं।

दफ़्न होकर ख़ाक में भी दफ़्न रह सकते नहीं।
लाला-ओ-गुल बन के वीरानों पे छा जाते हैं हम।।

अक्स पड़ते ही संवर जाते हैं चेहरे के नुकूश।
शाहिदे-हस्ती को यूँ आईना दिखलाते हैं हम।।

सारांश

मुहब्बत का नग़्मा हम अपने दिलों में गाते हैं। हमारे ग़म की आग में इतनी गर्मी है, जो पत्थर को भी पिघला देती है। अगर हम एक बार जाग जाएँ तो फांसी पर भी नींद नहीं आती। वक्त आने पर अंगारों पर भी सो सकते हैं जिन्दगी को हमसे बढ़कर कौन कर सकता है प्यार। अगर मरने पर भी आ जाएं तो मर सकते हैं हम। हर कब्र में मरने पर मुसलमान को मिट्टी डाली जाती है, पर हम कब्र में भी रह नहीं सकेंगे और फूटकर कब्र से गुलाब की तरह वीरानों पर छा जाएंगे। ज़िन्दगी को इस तरह आयना दिखलांएगें की चेहरे की परछाईयां भी उजागर हो जाऐंगी।