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Lyrics

02 Aquidey Bujh Rahe Hain.mp3


Album: ISHQ KA NAGMA (2003)

अक़ीदे बुझ रहे हैं.....- अली सरदार जाफरी

अक़ीदे बुझ रहे हैं, शम्ए-जाँ गुल होती जाती है।
मगर जौक़े-जुनूँ की, शोला सामानी नहीं जाती।।

खुदा मालूम किस किस के लहू की लाला कारी है।
ज़मीनें-कूए-जानां, आज, पहचानी नही ंजाती।

अगर यूँ है तो क्यों है, यूँ नही ंतो क्यों नहीं आखिर।
यकीं मुहकम है लेकिन, दिल की हैरानी नही ंजाती।

लहू जितना था सारा, सर्फे-मक़्तल हो गया लेकिन।
शहीदाने-वफ़ा के रूख़ की ताबानी नहीं जाती।।

नये ख्वाबों के दिल में शोला-ए-खुर्शीदे-महशर है।
जमीं पर हज़रतें-इन्साँ की सुल्तानी नहीं जाती।
ल्गाते हैं लबों पर मुहुर, अर्बबे-ज़बाँ बन्दी।
‘अली सरदार’ की, शाने-गज़ल ख़्वानी नहीं जाती।।


सारांश

जो हमारी मान्यताऐं हैं, वो खत्म होती जाती हैं ओर जो ज़िन्दगी का चिराग है वो बुझता जाता है, मगर हमारे पागलपन का शोला नहीं बुझता। ऐसी खूबसूरती है, इन फूलों की सजावट में, पता नहीं किस किस का खून शामिल है। प्रेमिका के ..... जाने का जो रास्ता है वही पहचाना नहीं जाता। अगए ऐसा है तो क्यों है, अगर वैसा हे तो क्यों नहीं हैं यकीन तो पक्का है इस बात का, लेकिन दिल हैरान है कि ऐसा क्यों है। जिनता खून था, वो कत्लगाह के तख्ता को दे दिया, लेकिन इसके बावजूद वतन पर मिटने वालों की शान सलामत है। आज़ादी के जो नए ख्वाब हैं, उनके दिल में शोला छुपा हुआ हैं। इन्सानी हुकूमत ज़मीन पर खत्म नहीं होती। जो जुबान पर पाबंदी लगाते हैं, वो होटों पर मुहर लगा देते हैं। तब भी, अली सरदार के ग़जल कहने की जो आन-बान है, वह उसी तरह कायम है।